तानों बानों का ये जोड़
यूँ ही उलझता जाता हैं
एक सुलझाओ तो दूसरा पैबंद नज़र आता है
तुम बुलाओ तो आसमान साफ़ नज़र आता है
चहचहाती चिड़िया और आंगन की बयार में
मीठे नीम की सांसें तुम्हारी आहटों को टोहती हैं
नरम मिट्टी से जो अंकुर फूटता है
वह सदियों को गिरह में लिये
पगडंडी पर राजा के किले के आगे
द्वारपाल सा रहता है
तुम आओ तो बंद किवाड़ खुल जाते हैं
हवाओं में मीठे नीम की सांसों के
अनुबंध खुल जाते हैं
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Thursday, April 12, 2012
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3 comments:
बहुत खुबसूरत एहसास है ........
wow
बहुत बढ़िया
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