सागर की विस्तृत बाँहों में
सुदूर गाँव में
फ़ेनिल से भीगे वन
अक्सर चम्पई फूलों से महक उठते हैं
बंद गली में मकान की कोठरी में
लड़की चार अंगुल की आसपास की दीवारों पर
खड़िया से वन, पक्षी के चित्रों को उकेरती है
खिड़की के जालों के बीच हाथ बढ़ा कर
उस महक को पहनना चाहती है
दीवारों पर बने चित्रों के बीच सजाना चाहती है
जादुई पहनावा शायद कर दे अदृश्य उन दीवारों को
जो कमरे को नापती हैं हर दिन
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Friday, April 20, 2012
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