Friday, January 16, 2009

सुरमई शाम

चुपके से सुरमई हो गयी थी शाम
रात ने सर रख दिया था काँधे पर
तारों ने बो दिये थे चन्द्रकिरण से मनके वीराने में
धवल, चमकीली चाँद की निबोली
अटकी रही थी नीम की टहनी पर
नीचे गिरी तॊ बाजूबंद सी खुल गई
सुरमई शाम रात के काँधे पर
सर रख कर सो गई ।

________________