दर्द का सैलाब रुक गया था
कागज़ के कोने पर
अहसास हो रहा था
कोने से टपक कर गिरी जो एक भी बूँद
अन्तराल की गहराईयों तक जाएगी
जहाँ अँधेरा
काली चिकनी चट्टान सा
शून्य सा जड़
आहिल्या की तरह पाषाण सा होगा
और दर्द की बूँद जब टपक कर गिरेगी
अन्तर्नाद करती हुई
एक उल्का
अनगणित फुलझड़ियाँ सी जलेगी।
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Tuesday, March 17, 2009
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