Wednesday, October 02, 2013

छोटे दिन

मौसम के आने जाने के बीच में
हरी पत्तियाँ जब पीली हो जाती हैं
पतझड़ छोटे दिन ओढ़ लेता है
जेब में गुम बहुत सी चीज़ें
घर के अन्दर मिलने लगती हैं
बार के बाहर खाली कॉफ़ी के कप
कुर्सी पर नीली जीन्ज़ सी धूप
टोपी पर गुड़हल के फूल
कोने की मेज़ पर खिलखिलाती हंसी
रूमानी अहसास को भेदती दो अंबियों सी आंखें
बसों के साथ चलते पेड़ों के साये
पार्क में रंगीन हरी बेंत के सिंहासन
राजा, रानी की शतरंज की बिसात
फव्वारे से उड़ते ठंडे पानी के परिंदे
संगीत की धुन पर थिरकते पांव
कैमरे के लैंस में गिटार और सूफ़ी धुन
लम्हों के शीशमहल में बेतक्कलुफ़ मौसम
मेज़ पर बिछे मेज़पोश पर करीने से रखे हैं
सर्दी के दिन छोटे और
रातें बहुत लम्बी हैं।

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Monday, May 20, 2013

सांझ के रंग

पत्ती पर बीरबहूटी
पकड़ कर बैठी थी एक बूँद
गीली, नम,
पारदर्शी
जिसमें उसको खुद के रंग दिखते थे
लाल, जैसे मोज़ों पर चढ़ती उतरती धूप
काला, जैसे बदन पर उभरता हुआ तिल
मिल जुल कर साँझ का वह रंग
गहरा सिन्दूरी
तलहटी के चश्मे में
जब घुला था
तब गाढ़े अंधेरे में
बीर बहूटी को मिला था
चाँद का टुकड़ा
खाली कलसी सा
जिसके टूटे पैंदे से नज़र आता था
दुनिया का वो छोर
जहाँ साँझ के और रंग नज़र आते थे