Tuesday, November 28, 2006

कुछ हायकु

१.
चौबारे तले
पीली निबोली झरी
बूढ़ा था नीम

२.
पतझड़ में
पत्ते गिरे तरू से
मैंने पहने

३.
सुर्ख सूरज
साँझ हुई गुलाबी
नयन बसी

४.
क्षणिक भ्रम
मीठी लगी मुस्कान
निकला चाँद

५.
भोज पत्र पे
रचे थे महाकाव्य
आज भी ज़िन्दा

६.
नव निर्माण
सदी का पृष्ठों पर
मिट रहा है

Sunday, November 19, 2006

जाते पतझड़ की शाम ...



हर मौसम अपनी अनूठी शामें और सुबह ले आता है. पतझड़ भी यहाँ आया और अब जा रहा है. जाते-जाते आगाह कर गया कि कोने पर ही शरद खड़ा है जो आने वाला है.

कनाडा और अमरीका में पतझड़ अपने साथ रँगों की इतनी बौछार ले आता है कि ऐसा लगता है जैसे भगवान फ़ुर्सत से बैठ कर कैन्वस पर तूलिका से रँगों का मजमा लगा रहें हैं । जैसे-जैसे दिन छोटे और रातें लम्बी होने लगती हैं, वैसे-वैसे पत्तियों के रँग बदलने लगते हैं. हरे रँग की पत्तियाँ लाल, पीली भूरी,सुनहरी हो जाती हैं. यह मेपल, ओक,हिकोरी,डागवुड, ऐश, पोपलर आदि वृक्षॊं मॆं पाया जाता है. पतझड़ को यहाँ fall कहते हैं. Fall Colors कितने गहरे या कितने फ़ीके होंगे वो मौसम, तापमान,बारिश जैसे कारणों पर निर्भर करता है.

आज मैं बैठी क्षितिज पर डूबते सूरज की भाव-भंगिमा को निहार रही थी. लग रहा था सूरज आज पत्तियॊं में कैद हो गया है, वो भी जाने को राज़ी नहीं था. मैं अपने कुत्ते 'विंसटन' के साथ बैठी सूरज की कशिश देख रही थी. हमारे कुत्ते का नाम विंसटन है पर विंसटल चर्चिल जैसे कोई गुण नहीं हैं. नाम हमारे बेटे और बिटिया नें सर्वसम्मति से रखा और हम दोनों का उस में कोई हाथ नहीं था । कुछ दूर पर एक गिलहरी को चीड़ के वृक्ष से गिरा 'पाइन कोन' मिल गया था, उसी को ले कर कुट-कुट कर रही थी. गिलहरी यहाँ पर ज़्यादातर मटमैली होती हैं. भारत में जो देखीं हैं थोड़े और हल्के रँग की होती हैं और पूँछ पर तीन धारियाँ होती हैं. विंसटन जो गिलहरी को कोन खाते देख रहा था उस की ओर लपकने के लिए तैयार बैठा था, अब राजनीतिज्ञ जैसे कोई गुण होते तो उसे पहले पटाता और फ़िर 'कोन' खोंस लेता.

हल्की सी खुनक हवा में बस रही थी. मुझे अंदर जाने के लिए बाध्य कर रही थी. आकाश में पक्षियों का झुण्ड अपने नीड़ की ओर जा रहा था. हरी घास पर बिछी लाल, पीली पत्ति्याँ लोटने के लिए निमंत्रण दे रहीं थी. ठँड से बचने के लिए मैं अपने को अपनी ही बाँहों के घेरे में कसती जा रही थी. हार कर अन्दर जाने के लिए उठी, कुछ लाल पीली पत्तियाँ मुट्ठी में बँद कर के पतझड़ को मन में अंकित करना चाह रही थी. विंसटन भी कुछ सूखे पत्ते अपने से चिपकाए पतझड़ को घर में ले आया. ये पत्ते कुछ दिन बाद सूख कर झीने हो जाएँगे पर कुछ दिन के लिए ये मौसम और ये रँग-बिरँगी पत्तियाँ साथ रह जाएँगी.