दिशा खोजती
नीर भरे बादल
भीगी है हवा.
बुझे अलाव
ठिठुर गई रात
दूर है भोर.
राह हठीली
मुड़ी न पगडंडी
भूली है पता.
गाढा अँधेरा
बदलते प्रहरी
गाती है रात.
नवेली रात
पग-पग बढे ये
साजन साथ.
बुला लो तुम
चैरी फूलों के संग
बसंत आया.
क्यूँ मैं चाहूँ
आकाश गँगा बहे
साथ में आज.
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Tuesday, January 23, 2007
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