Tuesday, January 23, 2007

कुछ हायकू

दिशा खोजती
नीर भरे बादल
भीगी है हवा.

बुझे अलाव
ठिठुर गई रात
दूर है भोर.

राह हठीली
मुड़ी न पगडंडी
भूली है पता.

गाढा अँधेरा
बदलते प्रहरी
गाती है रात.

नवेली रात
पग-पग बढे ये
साजन साथ.

बुला लो तुम
चैरी फूलों के संग
बसंत आया.

क्यूँ मैं चाहूँ
आकाश गँगा बहे
साथ में आज.

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