Saturday, February 25, 2012

मंगल कामनाएँ

यूँ ही कुछ पल गुज़र जाएँगे
यह साल भी जाता जाएगा
सदियाँ भी मेरी उँगली में लिपटी
भँवर सी घूमती जाएँगी
और फिर वही सुबह होगी
जब बस स्टॉप पर
धूप के टेढ़े तिरछे साए
कोहरे से निकल कर
मेरे पाँव के तलवे गुदगुदाएँगे
भारी बस्ते के बोझ से दबे कांधे
और थोड़े झुक जाएँगे
मैं उल्लसित सी
स्कूल जाने के लिये
कोहरे में लिपटे रा्ग गुनगुनाऊँगी
बाज़ार में खुलती दुकानें, धुली पटरी,
चाय की दुकान में
ठिठुरते इतिहास की तारीखों के जब पन्ने पलटूँगी
तो कहीं और
इस दिन को एक लघु कथा सा पाऊँगी
या
धूप से लिपटे अहसास को पाऊँगी
नहीं तो पाउँगी बच्चियों के बारे में एक लेख
जो स्कूल जाती थीं और कुछ बनना चाहती थीं।

_________________________

Friday, February 24, 2012

कंपकपाते उजाले

न्यू यॉर्क की बारिश में
बिजली के तारों पर बारिश की बूँदें
कतार में खड़ी
बंद शीशी में तिलिस्मी जादू सी गिरती हैं
शो विनडो में आधा फटा इश्तिहार
आधी नदी और चील के पंख
उड़ती नदी जिसमें असंख्य चाहतें
असंख्य न गुज़रे हुए पल
सूरज को ढाँप लेती है
दिन के कपकपाते उजाले में
चैरी के पेड़ से बँधी साईकिल
जीने पर खाली सोडा के कैन खनखनाते हैं
कोने में अलाव पर हाथ तापते हुए
हँसी के मखमली पल
दरवाज़े के कोने में पड़े
बेघर को कम्बल ओढ़ा आते हैं
आज की तारीख पर ये जरदोरी का काम
समय पर खूब फ़बता है

रात की तंह में
गलियों के जंगल में
कोहरा घुप्प सा ज़मीन के नीचे धंसा
आँखों के जंगल में
सपने बीन रहा है
नया साल फिर एक बिलबोर्ड के साइन से शुरू होता है

______________________
v