Friday, March 21, 2008

होली- कुछ चित्र

खुलते जाते सब गठबँधन
आसमान से हटते पहरे
जब से फागुन ले कर आया
पीत पराग रँग कुछ गहरे।
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पीली हल्दी, सजी किनारी
खिली धूप की चादर ओढ़ी
आँगन पूरा हरसिंगार सा
और वसंत खड़ी है ड्योढ़ी।
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पच पच पच करती पिचकारी
रँगों की बहती फुलवारी
मल गुलाल सिहरी दोपहरी
मेघों का सुन गर्जन भारी
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आँगन में फ़ैली है किच-पिच
रंग सुनहरे, चूनर गीली
सूर्य किरण अब उन्हें सोख के
खेल रही गलियों में होली।
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होली की शुभकामनाओं सहित