कोयल कुहकी
अमुआ महकी
पोखर पीला
सूरज निकला
ले फूलों के कलश कई
ड्योढ़ी फैले
अंगना खेले
नव पल्लव
पक्षी का कलरव
उल्ल्सित बसंत से खेल कई
गुब्बारे फूटे
गुलाल, रंग छूटे
अब गली ढूँढॆ
नुक्कड़ ढूँढे
वह दिवस जब बिखरे थे रंग कई
चौबारे के रंग
घर में हैं बंद
सूखी होली
जाए अबोली
बुलाए दर पर छपे पलाश के फूल कई।
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Monday, March 01, 2010
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8 comments:
होली की विलंबित बधाई
आहा !
बहुत ही खूबसूरत ।
vaah.
लाजवाब रचना है...बधाई...होली की शुभकामनाएं...
सुंदर !
अच्छा लगा !
सत के हित में जो लिखा जाये वही तो साहित्य है
आइये सत का दीदार थोरा ऐसे भी करे !
http://thakurmere.blogspot.com/
चौबारे के रंग
घर में हैं बंद
सूखी होली
जाए अबोली
सुन्दर चित्र खींचा है शब्दों से
कभी तो ढोलक बाजेगी
कभी तो घुंगरू झनकेगी
कभी तो गुलाल भुरकेगी
कभी तो गोपी आएगी
रसिया को रंग लगाएगी
और......कभी तो होली बोलेगी!!
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