Tuesday, September 02, 2008

नानाजी की टोपी

मैं नानाजी की टोपी,
चाँद की किरण से सीती थी।

अंदर से टोपी उधड़ गई थी।
उम्र में बड़ी हो गई थी।
थकी-हारी कुछ बेजान सी लगती थी।
जब तागे निकल जाते थे तो
झूमर से लहराते थी।
बड़े छोटे बेतरतीब से माथे पर नज़र आते थे।

टोपी अब भी पुख्ता थी।
ऐसे लगता था जैसे कोई मनौती हो,
दुआ सी असर करती थी।
नानाजी को ठंड से बचाए रखती थी।

चाँद की किरण तिलस्मी होती है,
अम्बर की परी नानाजी की सहेली होती थी।
टोपी जब ठीक हो जाती थी
ढेरों आशीषों की बरसात होती थी।
नानाजी के पास चाँद की किरण होती थी,
मेरे पास आशीषों की बरसात।

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17 comments:

manvinder bhimber said...

अंदर से टोपी उधड़ गई थी।
उम्र में बड़ी हो गई थी।
थकी-हारी कुछ बेजान सी लगती थी।
जब तागे निकल जाते थे तो
झूमर से लहराते थी।
बड़े छोटे बेतरतीब से माथे पर नज़र आते थे।

bahut hi bhawporn likha hai...
bdhaae

अमिताभ मीत said...

ऐसे लगता था जैसे कोई मनौती हो,
दुआ सी असर करती थी।

नानाजी के पास चाँद की किरण होती थी,
मेरे पास आशीषों की बरसात।

बहुत खूब. बहुत ही बढ़िया.

Smart Indian said...

बहुत सुंदर कविता है. पढ़कर मुझे अपने नानाजी याद आ गए.

डॉ .अनुराग said...

चाँद की किरण तिलस्मी होती है,
अम्बर की परी नानाजी की सहेली होती थी।
टोपी जब ठीक हो जाती थी
ढेरों आशीषों की बरसात होती थी।
नानाजी के पास चाँद की किरण होती थी,
मेरे पास आशीषों की बरसात।



बेहद भावपूर्ण ओर मासूम.....कई दिनों बाद आयी आप ?मसरूफ है कही ?

महेन्द्र मिश्र said...

nanaji par behad sundar rachana lagi . dhanyawad.

नीरज गोस्वामी said...

बहुत विलक्षण बिम्ब और शब्द चुने हैं आपने इस रचना के लिए..बहुत खूब...वाह.
नीरज

Dr. Amar Jyoti said...

एक अछूते विषय का मर्मस्पर्शी और अनूठा चित्रण।
बधाई ही नहीं आभार भी ऐसी रचना देने के लिये।

Pratyaksha said...

बहुत सुंदर !
और कहाँ रहीं इतने दिन ?

pallavi trivedi said...

चाँद की किरण तिलस्मी होती है,
अम्बर की परी नानाजी की सहेली होती थी।
टोपी जब ठीक हो जाती थी
ढेरों आशीषों की बरसात होती थी।
नानाजी के पास चाँद की किरण होती थी,
मेरे पास आशीषों की बरसात।
bahut sundar...

कामोद Kaamod said...

अंदर से टोपी उधड़ गई थी।
उम्र में बड़ी हो गई थी।
थकी-हारी कुछ बेजान सी लगती थी।
जब तागे निकल जाते थे तो
झूमर से लहराते थी।

साधारण से शब्द और गहरी बात ...
बहुत बढ़िया

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अरे वाह,
इत्तनी प्यारी कविता लिये
आज आप आईँ हैँ :)
स स्नेह,

- लावण्या

art said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति है। सस्नेह

राकेश खंडेलवाल said...

हां वे अनदेखे टांके
अभी भी मज़बूती से
हवाओं के धागे से
जोड़े हुए हैं
उस एक अहसास को
जो जुड़ा है
सब असे

Purnima said...

bahut accha likha hai mam...
simply very good....
thank u....

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

rajniji
aapki rachana mein bhav, prateek aur samvedna bahut achchi hai.kabhi mere blog per bhi aaiye.

संपादक सरल-चेतना said...

bhavon ka sundar chitran. par laya me kuchh kami najar aai. kahin kahin tuk thik nahi baith pa rahi hai. koshish karti rahen. meri shubhkamnayen.

संगीता मनराल said...

बहुत खूबसूरत! मुझे मेरे नाना जी की याद आ गई