Saturday, February 25, 2012

मंगल कामनाएँ

यूँ ही कुछ पल गुज़र जाएँगे
यह साल भी जाता जाएगा
सदियाँ भी मेरी उँगली में लिपटी
भँवर सी घूमती जाएँगी
और फिर वही सुबह होगी
जब बस स्टॉप पर
धूप के टेढ़े तिरछे साए
कोहरे से निकल कर
मेरे पाँव के तलवे गुदगुदाएँगे
भारी बस्ते के बोझ से दबे कांधे
और थोड़े झुक जाएँगे
मैं उल्लसित सी
स्कूल जाने के लिये
कोहरे में लिपटे रा्ग गुनगुनाऊँगी
बाज़ार में खुलती दुकानें, धुली पटरी,
चाय की दुकान में
ठिठुरते इतिहास की तारीखों के जब पन्ने पलटूँगी
तो कहीं और
इस दिन को एक लघु कथा सा पाऊँगी
या
धूप से लिपटे अहसास को पाऊँगी
नहीं तो पाउँगी बच्चियों के बारे में एक लेख
जो स्कूल जाती थीं और कुछ बनना चाहती थीं।

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1 comment:

Neha Sharma said...

Ye dost bhi baray ajeeb hotay hen;
Dene per aayen t Jaan or Lene per aayen to Hansi tak cheen len,
Kehne per aayen to dil kay saray raaz khol den,
chupane per aayen to ye tak na batayen kay khafa Quen hen,
Naraz hone per aayen to saans tak na lene den,
mannane per aayen to apni saansen tak waar den.
Dost zindagi men nahn balkay zindagi doston men mila kerti hai.