चलो आज फिर रात के सायों तले
टिप टिप करती बूँदों को पिरो लें
तुम उनको खिड़की में रखना
मैं उनको चाँदनी का जामा पहनाऊँगी
चाँदनी का लिबास पहन कर बूँदें
जब नीचे उतरेंगीं तो रास्ते में
खो न जाएँ,
आसमान की डिबिया बना देना
हम खोलेंगे उसे अमावस के दिन
तब चाँदनी होगी और नमी भी होगी
__________________
Saturday, September 24, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
kitha sundar hai...
खूबसूरत !
bahut sunder kalpna
badhai
rachana
Post a Comment