Saturday, November 27, 2010

नागफनी

देखूँ,
यदि आज मैं
गहरे नीले अम्बर को भेद सकूँ,
बरखा की बौछारों में
अपने अन्तर्मन को टटोल सकूँ,
सदियों से मूक मैं
इस धरती की व्यथा को बोल सकूँ,
तो
मैं नागफ़नी,
इन काँटों को झर कर,
तुम्हारा कोमल स्पर्श पा कर
अथाह नील,शांत समुद्र में डूब कर,
गौरांवित हो जाऊँगी और
तुमको अपने में समा लूँगी

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2 comments:

निर्मला कपिला said...

सुन्दर प्रेमाभिव्यक्ति। बधाई।

Dr (Miss) Sharad Singh said...

आपका ब्लॉग देख कर प्रसन्नता हुई। कविता बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है। बधाई। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!