अब तक का समाचार कुछ ऐसा है
अम्मा की रात
एक पहर की हो गई है,
तकिये के सिरहाने
घड़ी की टिक टिक बंद हो गई है,
दर्द रहा पूरी रात भर पर
कल से कुछ आराम सा है
नदी शोर मचाती रही,
आकाश गंगा से
उल्काएँ टूटती रहीं रात भर,
किताब के पन्ने खुले रहे
उसी पृष्ठ पर,
मन में बेचैनी रही रात भर पर
कल से मन कुछ अनमना सा है
आकाश की असीमता छोटी हो गई
रेत के टीले और ऊँचे हो गए
घर के आगे अब नागफ़नी उग आई है
समुद्र का शोर हर दिन दरवाज़े पर दस्तक देता है
सदियाँ यहाँ आते आते थक जाती हैं
अंधड़ में गाँव का रास्ता खो गया है पर
कल से कुछ ठहराव सा है
अब तक का समाचार यह है
समय के दस्तावेज़ों में
मेरा तुम्हारा नाम दर्ज़ नहीं है
मानचित्र पर अब वह गाँव नहीं है
पल पल का अहसास नहीं है
सन्नाटे में कोई शोर नहीं है
कल से कुछ डेज़ा वू सा है।
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Wednesday, August 24, 2011
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