एक सजल, निश्चल प्रयास हर दिन का
हर दिन हिमालय की चोटी पर चढ़ना
विश्रांत, थकी देह को चूर-चूर होते देखना
समतल, नगण्य और मौन विस्तब्धता
फिर उठाती है
एक पानी की बूँद
जिसके स्रोत से फूटते हैं
अनेक मीठे झरने जो
इस चराचर को तृप्त कर के
मेरे भीतर के बुद्ध को
जलमग्न कर देते हैं।
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Saturday, August 21, 2010
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3 comments:
एक पानी की बूँद
जिसके स्रोत से फूटते हैं
अनेक मीठे झरने जो
इस चराचर को तृप्त कर के
मेरे भीतर के बुद्ध को
जलमग्न कर देते हैं।
बहुत ही सुंदर? काफी गूढ़ बात कह दी आपने।।
गहन!
is boond me aseem shkti hai . aapki bhavnaye bhut achchhi lgi .swagat hai .
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