लगता है क्यों कि तुम हो आसपास
इन्द्रधनुष का एक रंग जो
लाल मौली सा खिंचा था क्षितिज के आसपास
बांध दिया था सूरज को उस मौली से आज,
मैं हरी दूब सी बिछी
पकड़े हुई थी दूसरा सिरा
सूरज को गांठ में बांध कर
नितल में छोड़ आई थी,
तुमने बदमाशी की थी,
रात को तुम गहराई से निकाल लाए थे,
आज पत्ते से लटकी ओस की बूँद में
तारे सा सूरज झिलामिला रहा था।
जब उसको देखा था तो
जाने क्या जता रहा था,
अपने पास बुला रहा था,
क्यों
लगा कि तुम हो आसपास।
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Friday, August 13, 2010
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1 comment:
बेहतरीन प्रस्तुति ,उम्दा रचना ..!!
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