बातें, बातों और बातों के पीछे
खूबसूरत मंज़र भटकते हैं
खामोश से,
बंद किवाड़ के पीछे
ठाकुर जी से रहते हैं,
हर दिन नए जंगल बनते हैं,
दरदरे जंगल में चीड़ के पेड़
धूप छाँव का खेल खेलते हैं
रेशम के तार जब सिरा ढूँढते हैं
मन से उलझ जाते हैं
शाख पर तब बहुत से
ज्योति पुंज नज़र आते हैं
बारिश की बूँदों सी बातें
टिप-टिप कर के झरती हैं
मेरे अहसास भिगोती हुई
खिलती धूप की प्रतीक्षा करती हैं।
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Friday, March 12, 2010
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6 comments:
बारिश की बूँदों सी बातें
टिप-टिप कर के झरती हैं
मेरे अहसास भिगोती हुई फिर
खिलती धूप की प्रतीक्षा करती हैंnice
achha hai.....
Behad Khubsurat Abhivyakti.
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
रेशम के तार जब सिरा ढूँढते हैं
मन से उलझ जाते हैं
मन जब उलझे तो उलझ जाने दो
जिन्दगी को यूँ ही कुछ तो बहाने दो
क्या बात है
बढ़िया भावाव्यक्ति!!
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