मेरे सर्वस्व की गाँठ
पानी, आग, धरा, पंचतंत्रो से गुँथी है,
अक्षत, रोली, मौली, धूप, दीप
से बनी है,
देवी, देवताओं, खड़िया से दीवार पर सजी है,
पेड़ों की फ़ुनगी पर नभ से बंधी रहती है
खुलती है तो छाँव सी धूप में घुल जाती है,
दिन जब चढ़ता है तो
बड़ या पीपल पर मन्न्त सी चढ़ जाती है।
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Sunday, October 25, 2009
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6 comments:
मेरे सर्वस्व की गाँठ
पानी, आग, धरा, पंचतंत्रो से गुँथी है...
bahut hi sunder panktiyan hain.... behtareen shabdon ke saath ek bahut hi khoobsoorat kavita....
regards...
ati sundar shabdo se likhi .....mere sarvashv ki gaanth
jyotishkishore.blogspot.com
पेड़ों की फ़ुनगी पर नभ से बंधी रहती है'
आसमानी एहसास देती रचना
सुन्दर भाव!
विरले शब्द का तारतम्य है! अति सुन्दर !!
मेरे सर्वस्व की गाँठ
देवी, देवताओं, खड़िया से दीवार पर सजी है,
पेड़ों की फ़ुनगी पर नभ से बंधी रहती है....
सुन्दर shbd हैं ...... कल्पना की achhe udaan है .......... कमाल की रचना का srajan huva है ..........
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