कुनमुनी रातें
अलाव सिकी यादें,
कुलमुलाती हैं
सखी की बातें
ठौर-ठौर पिये
चाँदनी का दोना लिये,
मढ़ती रात
तारों के धागे लिये
पोरों पर कसती
रानी कहानी रचती,
सूखी पीली पत्ती
अम्बर पर लिखती
मन गुंथी सांझ
झर गए पात-पात,
गुलाबी पतझड़ जाए
सखी घर याद आए।
Tuesday, December 01, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
गुलाबी पतझड़ जाए
सखी घर याद आए।
बहुत सुन्दर
मन प्रसन्न हो गया जी यह कविता पढ़कर
आजकल कुछ अच्छी कवितायेँ पढ़ीं हैं जिनमें यह भी एक है.
ओह!!!! बहुत ही खूबसूरत रचना । बहुत सुन्दर……
बहुत सुन्दर...पसंद आई.
पोरों पर कसती
रानी कहानी रचती,
सूखी पीली पत्ती
अम्बर पर लिखती
बहुत सुन्दर लिखा है आपने
Simply beautiful Rajni-ji!
कुनमुनी रातें
अलाव सिकी यादें,
ठौर-ठौर पिये
चाँदनी का दोना लिये,
मन गुंथी सांझ
I especially loved these expressions!
Post a Comment