बचपन से दुआएँ साथ चलती हैं
आँगन को बुहारती
टीन के डिब्बे में आम की पौध सी पलती हैं
मेरे हाथ की लकीरों में
गली में स्टापू सी खेलती हैं
रात में सपनों सी
दिन में पूजा के आचमन सी मिलती हैं
बाँस के झुरमुट में
मेरे तलवे के नीचे धूप सी खिलती है
नन्हे पैरों से विचरती
आँगन में ओस की बूँदों सी झरती हैं
बट पर मन्नतों में
मेरी कलाई में मौली से बँधी मिलती है
बचपन से दुआएँ साथ चलती हैं
दीवारों पर फूल के बूटों सी मिलती हैं।
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Sunday, April 19, 2009
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7 comments:
आपकी कविता के बहुत सुंदर भाव है....शब्दों का संजोजन भी बहुत प्यारा है ......
मेरी पहली टिप्पणी में कविता शब्द छूट गया था।
क्षमा के साथ पुनश्च-
रजनी भार्गव तुम्हारी कविता में भाव के
साथ-साथ नयापन भी है।
बधाई।
लिखिये और यूँ ही सुँदर ताने बानोँ से खेलती रहीये रजनी भाभी जी -
बहुत खूब
A Salute.
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना.
apratim duaein hain ye.
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