उड़ती फ़ूस
कटी-कटी धूप
गुड़-गुड़ करती
बाबा के हुक्के की मूँज
जेठ दुपहरी
छाँव तले गिलहरी
किट-किट करती
अम्मा की सुपारी दिन सून
लम्बे दिन
लम्बी तारीखें
औंधे मुँह ऊँघती
जीजी की किताबें, परचून
गुम हवा
झुलसी धरा
मेढ़ पर सोचती
उसकी आँखें लगी, सब सून
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Friday, July 03, 2009
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7 comments:
बहुत सुन्दर.
वाह क्या दृश्य पेश किया है किसी जेठ की दोपहर का बहुत सुन्दर बधाई
बहुत सुंदर, श्रेष्ठ गीत।
Bahut hi badhiya !
जेठ दुपहरी
छाँव तले गिलहरी
किट-किट करती
अम्मा की सुपारी दिन सून
वाह वा...वाह वा...अद्भुत रचना...आनंद आ गया पढ़ कर...बहुत बहुत बधाई आपको
नीरज
Aap ne Manpasand kitabon ke bare mein likha hain. MRITYUNJAY ke lekhak Shivaji SAMANT nahi balki Shivaji SAWANT hain. Pls. correct it, if u think so.
dopahar ka aankhon ko thandhak dene wala chitr kheencha hai...bimb behad khoobsoorat hain.
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