Friday, July 03, 2009

जेठ बुलाए

उड़ती फ़ूस
कटी-कटी धूप
गुड़-गुड़ करती
बाबा के हुक्के की मूँज

जेठ दुपहरी
छाँव तले गिलहरी
किट-किट करती
अम्मा की सुपारी दिन सून

लम्बे दिन
लम्बी तारीखें
औंधे मुँह ऊँघती
जीजी की किताबें, परचून

गुम हवा
झुलसी धरा
मेढ़ पर सोचती
उसकी आँखें लगी, सब सून
_____________

7 comments:

अमिताभ मीत said...

बहुत सुन्दर.

निर्मला कपिला said...

वाह क्या दृश्य पेश किया है किसी जेठ की दोपहर का बहुत सुन्दर बधाई

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत सुंदर, श्रेष्ठ गीत।

अभिषेक मिश्र said...

Bahut hi badhiya !

नीरज गोस्वामी said...

जेठ दुपहरी
छाँव तले गिलहरी
किट-किट करती
अम्मा की सुपारी दिन सून

वाह वा...वाह वा...अद्भुत रचना...आनंद आ गया पढ़ कर...बहुत बहुत बधाई आपको
नीरज

Unknown said...

Aap ne Manpasand kitabon ke bare mein likha hain. MRITYUNJAY ke lekhak Shivaji SAMANT nahi balki Shivaji SAWANT hain. Pls. correct it, if u think so.

Puja Upadhyay said...

dopahar ka aankhon ko thandhak dene wala chitr kheencha hai...bimb behad khoobsoorat hain.