Wednesday, October 01, 2008

कुछ हायकु

टूटते तारे
लान में लेटे हुए
अगस्त माह

गाँव में चाँद
बावड़ी में भीगा है
अमा आ गई

धुला सूरज
जंगले आती धूप
चाय की चुस्की

गरजे मेघ
कानाफ़ूसी करते
ऊँचे शीशम

नन्ही मछली
पोखर है हाथ में
जमी है काई

मेपल पत्ती
डायरी के पन्ने
झड़ रहे हैं

__________

18 comments:

रंजू भाटिया said...

बढ़िया है यह ...अच्छा लगा पढ़ना

प्रशांत मलिक said...

अच्छा लिखा..

प्रशांत मलिक said...

बावड़ी और
मेपल पत्ती का मतलब समझ नही आया

कुश said...

haiku aur kshanikaye mujhe hamesha se priy rahi hai.. aapne bahut hi khoobsurati se likhe hai.. tay nahi kar pa raha hu kaunsa sabse badhiya hai..

डॉ .अनुराग said...

धुला सूरज
जंगले आती धूप
चाय की चुस्की


वाह ये बेहद पसंद आया

परमजीत सिहँ बाली said...

सभी हाय्कु बहुत बढिया हैं।

आप सभी को गाँधी जी, शास्त्री जी की जयंति व ईद की बहुत बहुत बधाई।

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

बहुत अच्छे चित्र खींचते हैं ये हाइकु।

ambrish kumar said...

खूबसूरत

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

gagar mein saagar.

maine bhi apney blog par gazal post ki hai. fursat mile to dekhiyega.

http://www.ashokvichar.blogspot.com

राकेश खंडेलवाल said...

रजनी भाभी
सुन्दर लगे सब
हातकू हमें

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया.


आनन्द आ गया.

BrijmohanShrivastava said...

हायकू बहुत अच्छे है /दूसरे हायकू में ""अमा आ गई "" तथा अन्तिम में ""मेमल पत्ती ""हमारे क्षेत्र के लिए नए शब्द है -कभी पढ़े सुने भी नहीं -मेरी इस त्रुटी के लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ

pallavi trivedi said...

मेपल पत्ती
डायरी के पन्ने
झड़ रहे हैं

ye bahut achchi lagi...

art said...

rajni di ,mujhe aapka likha hamesha se hi bahut pasand aata hai.....kabhi aisa bhi lagta hai ki aapke kavya me aur mere kavya men ek apurva samanta hai jo ki mujhe aapke lekhan se aur bhi adhik jod deta hai.....

महेश लिलोरिया said...

रजनी जी अति उत्तम!
इस हायकू के शब्दसागर में बहुत गहराई है। आपकी कल्पना की कूची बहुत ही कशिशभरी है। हर शब्द एक निश्चित जगह पर ले जाता है और वहां के माहौल में सैर करा लाता है। ऐसा लगता है मानो आस-पास ही कहीं कुछ ऐसा घट रहा है और वह लगना ही आपने हूबहू शब्दों से उकेरा दिया है। शब्दों की बाढ़ लाने के बजाय आपने जो रिमझिम में भिगोया है वह बहुत ही खूबसूरत अंदाज है।
बधाई!

वर्षा said...

बहुत ही सुंदर

अनुपम अग्रवाल said...

achaa likhaa gayaa hai.
धुला सूरज
जंगले आती धूप
चाय की चुस्की
yah sabse achhaa lagaa.

अभिषेक आर्जव said...

क्षमा कीजियेगा , लेकिन जो थोडा बहुत मुझे पता है , उसके हिसाब से "हायकू" तीन पंक्तियों की अपने आप में एक समग्र रचना होती है ! उसमे पूरा कथ्य तीन पंक्तियों में ही अभिव्यक्त होता है ! दूसरे शब्दों में उसकी अर्थ - भंगिमा अन्य क्रमागत पंक्तियों के बिना भी समग्र होती है !