Monday, June 02, 2008

आकांक्षा

आकाश को कितनी ही बार
अपने हाथों में ले कर
दूधिया बादल से नहाई हूँ मैं,

आकांक्षाओं को कई बार
अपनी आँखों में संजो कर
रंग भरी पिचकारी सी छूटी हूँ मैं,
और फिर,
गुलमोहर की तरह गर्व से
तुम पर बिखर गई हूँ मैं,

क्षितिज का प्रथम पहरेदार
आकाश में वो जो ध्रुव तारा है,
उसे तुम्हे सौंप कर
रात में चाँदनी बन कर छिटक गई हूँ मैं

तुम जानो या न जानो
अहसासों के इस गुलदान में
बादलों से नहाई हूँ,
रंगों से भीगी हूँ,
चाँदनी सी छिटकी हूँ,
और इन्ही खूबसूरत अहसासों से,
संदली हवा की तरह
महक गई हूँ मैं।

12 comments:

डॉ .अनुराग said...

तुम जानो या न जानो
अहसासों के इस गुलदान में
बादलों से नहाई हूँ,
रंगों से भीगी हूँ,
चाँदनी सी छिटकी हूँ,
और इन्ही खूबसूरत अहसासों से,
संदली हवा की तरह
महक गई हूँ मैं।

खूबसूरत अहसासों से सरोबर कविता.....सुंदर.....

बालकिशन said...

सुंदर!
अति सुंदर!
महकाती हुई एक रचना के लिए धन्यवाद.

Udan Tashtari said...

क्षितिज का प्रथम पहरेदार
आकाश में वो जो ध्रुव तारा है,
उसे तुम्हे सौंप कर
रात में चाँदनी बन कर छिटक गई हूँ मैं


-वाह, बहुत कोमल रचना. बहुत बधाई.

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

आकांक्षाओं को कई बार
अपनी आँखों में संजो कर
रंग भरी पिचकारी सी छूटी हूँ मैं,
और फिर,
गुलमोहर की तरह गर्व से
तुम पर बिखर गई हूँ मैं...

Behad khubsurat rachna hai aapki. bimbon aur pratibimbon ka sunder prayog kiya hai . aapko meri aur se shubhkaamnayein.
Meray blog par padharne ka bhi dil se shukriya.

अजित वडनेरकर said...

रजनी जी, बहुत सुंदर रचना है। शब्दों का सुंदर चयन तो है ही उनकी सम्पूर्ण अर्थवत्ता का रेशमी अहसास भी इनमें समाया है । शुक्रिया...

art said...

क्षितिज का प्रथम पहरेदार
आकाश में वो जो ध्रुव तारा है,
उसे तुम्हे सौंप कर
रात में चाँदनी बन कर छिटक गई हूँ मैं.....

बेहद सुंदर.....भावपूर्ण

महावीर said...

क्षितिज का प्रथम पहरेदार
आकाश में वो जो ध्रुव तारा है,
उसे तुम्हे सौंप कर
रात में चाँदनी बन कर छिटक गई हूँ मैं
आपकी इस कविता और अन्य रचनाओं में शब्दावली, कल्पना और भाषा की अद्भुत पकड़ देखने के योग्य है।

Anonymous said...

बादलों से नहाई हूँ,

क्या बात है?
पहली बार आपके ब्लोग में आया हूँ भार्गव से पता चल गया आप कौन हैं। साथ ही साथ इतना और पता चल गया कि आप लोग और हम पड़ोसी है यानि कि मुश्किल से ३-४ मील की दूरी पर।

राकेश खंडेलवाल said...

भावों की कोमल उड़ान को
शब्द प्रशंसा के क्या बाँधें ?
यही कामना नित्य आप इस
मॄदुता से भाषा आराधें
चित्रात्मकता यह भावों की
मुश्किल से ही मिल पाती है
यह विशाल अनुभूति गहनतम
नमन कर रहीं मेरी साधें

प्रवीण पराशर said...

akanksha !! rajni ji appki akanksha badi acchi lagi , abhi meri akanksha se v miliye .....

vijaymaudgill said...

तुम जानो या न जानो
अहसासों के इस गुलदान में
बादलों से नहाई हूँ,
रंगों से भीगी हूँ,
चाँदनी सी छिटकी हूँ,
और इन्ही खूबसूरत अहसासों से,
संदली हवा की तरह
महक गई हूँ मैं।
क्या बात है! बहुत ख़ूब लिखा है। बहुत ही ज़बरदस्त अहसास है आपकी इस कविता में।
श्रेष्ठ कविता

महेंद्र मिश्र said...

कितने महके हुये से स्वप्न देखती हैं आप....और फ़िर कितने खूबसूरत अन्दाज़ में बिखेर देती हैं...यूँ कि हम ही हों ख्वाब मे...साधुवाद..