Sunday, July 22, 2007

उम्मीद

उम्मीद आसुँओं में बसी रहती है
बहती हुई यूँ हीं सफ़र तय करती है

मन में बेचैनी घनी धुँध सी रहती है
कोहरा छटे तो अजब तपिश सी लगती है

तुम जब लौट-लौट कर आते हो
ज़िन्दगी अध्यायों में बँटी लगती है

अक्षर जब तुम्हारा अनुसरण करते हैं
तुमसे लिखी हुई कहानी अच्छी लगती है

साँझ के काले साए जब और गहरे होते हैं
उससे रची भोर की अरूणिमा सुन्दर लगती है.

6 comments:

Pratyaksha said...

बहुत सुंदर !

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!

36solutions said...

सुन्‍दर अक्षरों और भावों का अनुसरण किया है । धन्‍यवाद

Udan Tashtari said...

बहुत खूब. आनन्द आया. खास पसंद:

तुम जब लौट-लौट कर आते हो
ज़िन्दगी अध्यायों में बँटी लगती है


-वाह. बधाई.

Monika (Manya) said...

Wow!! very nice.. नवीनता है प्रतीकों में..रूक कर सोचने को मज्बूर कर देती है कविता...एक नहीं कई बार पढा.. बहुत कोमल ...

Mohinder56 said...

सुन्दर भावभरी रचना...

उम्मीद आसुँओं में बसी रहती है
बहती हुई यूँ हीं सफ़र तय करती हैतुम जब लौट-लौट कर आते हो
ज़िन्दगी अध्यायों में बँटी लगती है