दिशा खोजती
नीर भरे बादल
भीगी है हवा.
बुझे अलाव
ठिठुर गई रात
दूर है भोर.
राह हठीली
मुड़ी न पगडंडी
भूली है पता.
गाढा अँधेरा
बदलते प्रहरी
गाती है रात.
नवेली रात
पग-पग बढे ये
साजन साथ.
बुला लो तुम
चैरी फूलों के संग
बसंत आया.
क्यूँ मैं चाहूँ
आकाश गँगा बहे
साथ में आज.
___________
Tuesday, January 23, 2007
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10 comments:
"बुला लो तुम
चैरी फूलों के संग
बसंत आया."
हायकू को लेकर ज्यादा जानकारी तो नहीं है पर अच्छा लगा पढ़ कर ।
हयकू के संदर्भ में मेरा ज्ञान अधुरा है लेकिन पढ़कर अच्छा लगा…धन्यवाद
खूबसूरत हायकू!
बहुत ही सुन्दर हाइकु!!!
अति सुंदर, खास तौर पर इस हाईकु में बहुत गहराई दिखी:
बुझे अलाव
ठिठुर गई रात
दूर है भोर.
वाह, बधाई.
बुझे अलाव
ठिठुर गई रात
दूर है भोर.
क्या बात है ...सुंदर !
सबसे अच्छी यह लगी
राह हठीली
मुड़ी न पगडंडी
भूली है पता.
एक कोशिश....
समन्दर में
लहरें उठी
ले गई संदेशा ।
आप जो भी लिखती हैं...बहुत अच्छा लगता है।
सीमा जी, दिव्यभ जी,प्रत्यक्षा,
गिरिराज जोशी जी,समीर जी, मनीष जी और बेजी
आप सब को हायकू अच्छे लगे,बहुत खुशी हुई जान कर.
रजनी जी
सर्वप्रथम आप का मेरे ब्लाग पर पधारने का बहुत बहुत धन्यवाद
मैने आप की रचनाऐं पढी.. बहुत सुन्दर ढंग से आप ने अपने विचार व्यक्त किये हैं उसके लिये आप प्रशंसा की पात्र हैं
मैने आज ही एक रचना http://merekavimitra.blogspot.com पर प्रेषित की है 'केवल संज्ञान है' उस पर आप की टिप्पणी की प्रतीक्षा है
मोहिन्दर
http://dilkadarpan.blogspot.com
बुझे अलाव
ठिठुर गई रात
दूर है भोर.
मुझे ये अच्छी लगी
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