मुझको सूरज की किरण दे दो,
आकाश का नीला विस्तार दे दो,
मैं हूँ एक पाखी,
जीने के लिए ऊँची उड़ान दे दो.
मैं अपने कोमल पँखों को फ़ैलाऊँगी
बादलों के साथ बहुत दूर तक जाऊँगी
कोई साथी नहीं होगा,
इस सफ़र के अनंत बिंदु तक जाऊँगी.
पेड़ के नीचे ठंडी हवा जब बहेगी
पलकें बोझिल हो कर उनींदे सपने देखेंगी
कुछ देर सुस्ता कर,
सपनों में पथ के पाथेय को बुला लेंगी.
दूर दराज़ जब राह को तकूँगी
झूले की पींगों से और उपर उड़ूँगी
आसमान को छूती हुई
राह को दो पल में कनक सी चुग लूँगी
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Tuesday, April 13, 2010
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14 comments:
कुछ शीतल सी ताजगी का अहसास करा गई आपकी रचना।
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
पाखी की सब तमन्नायें पूरी हों!
शीतलता प्रदान करती हुई रचना. उम्मीदे जगाती. आशावादी भी.
nice
bhaav bahut achhe hain kavita ke..craft pe zara dhyaan dena hoga...
आमीन !!!!
सकारात्मक सोच के साथ एक महत्वाकांक्षी रचना ! आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों यही शुभकामना है !
http://sudhinama.blogspot.com
http://sadhanavaid.blogspot.com
bahut badhiya....
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
JI BAHUT BADHIYA...
KUNWAR JI,
बेहतरीन रचना!!
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
जीने के लिए ऊँची उड़ान दे दो.....nice..
अति सुन्दर...
आपके ब्लॉग को फ़ॉलो कैसे करें...?
फ़ोलोवर्स विज़ेट जोड़ेंगी तो अच्छा रहेगा...
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