सेतू के किनारे खिले थे
कुछ आसमानी फूल,
पानी में बिम्बित था
सुनहरी आकाश अपार,
मैंने आकाश की असीमता
उठा के दी थी तुम्हे,
तुम्हारी असीमता में मुझे मिले
कुछ फूल उपहार में,
आँगन में मेघदूत मिले
काले और बौराए से,
और
संदेसों की झारी में
गुलाब की कुछ पाँखुरी पड़ी
काली स्याह रात में
जब असीमता ढली,
चाँदनी दबे पाँव
ले आई थी कहानी तारों की
और एक उल्का खिली थी
मेरे सिरहाने ले के
कुछ आसमानी फूल
Thursday, September 17, 2009
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8 comments:
बहुत खुब लिखा है आपने। हर एक पंक्ति लाजवाब है। इस शानदार रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई..............
कितने खूबसूरत तरीके से आपने एक एक शब्द पिरोए है,आप ने आसमानी फूल से जो कविता रूपी खुश्बू बिखेरी हैं..बहुत बहुत बधाई के पात्र है..रचना बहुत अच्छी है!!!
काली स्याह रात में
जब असीमता ढली
चाँदनी दबे पाँव
ले आई थी कहानी तारों की
और एक उल्का जो खिली थी
मेरे सिरहाने ले के
कुछ आसमानी फूल
waah bahut lajawab rahi ye lines.har shabd jaise kuch keh raha ho,sunder rachana
जब असीमता ढली
चाँदनी दबे पाँव
ले आई थी कहानी तारों की
और एक उल्का जो खिली थी
मेरे सिरहाने ले के
कुछ आसमानी फूल
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
अद्भुत ....अरसे बाद ....
बहुत सुन्दर भाव की रचना
"और एक उल्का खिली थी
मेरे सिरहाने ले के
कुछ आसमानी फूल"
नया बिम्ब
चाँदनी दबे पाँव
ले आई थी कहानी तारों की
और एक उल्का खिली थी
मेरे सिरहाने
सुन्दर
चाँदनी दबे पाँव
ले आई थी कहानी तारों की
और एक उल्का खिली थी
मेरे सिरहाने
सुन्दर
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