Friday, January 16, 2009

सुरमई शाम

चुपके से सुरमई हो गयी थी शाम
रात ने सर रख दिया था काँधे पर
तारों ने बो दिये थे चन्द्रकिरण से मनके वीराने में
धवल, चमकीली चाँद की निबोली
अटकी रही थी नीम की टहनी पर
नीचे गिरी तॊ बाजूबंद सी खुल गई
सुरमई शाम रात के काँधे पर
सर रख कर सो गई ।

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17 comments:

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

बहुत सुंदर। आप को और लिखना चाहिये, इतने अंतराल के बाद नहीं।

Pratyaksha said...

मोती टपका था जब
पानी में
चाँद हँसा था चुपके चुपके
तल पर बैठा फूल मगर
चुप चुप
कुछ कुछ सोचा था
रात रही थी
गुमसुम सुनगुन
थोड़ी सी शरमाई सी

निर्मला कपिला said...

बहुत भावमय है

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छा।

अमिताभ मीत said...

क्या बात है.

Vinay said...

आपकी सुन्दर कविता के लिए बधाई

---मेरे पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें

चाँद, बादल और शाम

कुश said...

भावनाओ से ओत प्रोत क्षणिका है..

पारुल "पुखराज" said...

shaam se raat..bahut sundar

के सी said...

सुंदर है!

डॉ .अनुराग said...

नीचे गिरी तॊ बाजुबंध सी खुल गई
सुरमई शाम रात के काँधे पर
सर रख कर सो गई ।



ओपचारिकता वश खूबसूरत नही कहूँगा.....सच मच कहूँगा ..अरसे बाद दिखी...

रंजू भाटिया said...

बहुत प्यारी पंक्तियाँ लगी यह

सुरमई शाम रात के काँधे पर
सर रख कर सो गई ।

Udan Tashtari said...

कोमल रचना भाभी. बधाई.

रजनी भार्गव said...

आप सभी को धन्यवाद ब्लाग पर आने के लिये,प्रत्यक्षा तुमने तो मेरी कविता को चार चाँद लगा दिये।

अभिषेक आर्जव said...

अद्भुत !

अवधेश झा said...

सुरमई शाम रात के काँधे पर
सर रख कर सो गई ।

फ़िर शाम घुल गई रात में
और रात सपने में खो गई
जब आँख खोली रात ने
तो देखा की सुबह हो गई ........


Rajni ji...namaste
pehli baar aapke blog ko padha ,
ab to baar baar padhunga...
aapke sukhad jiwan aur achhe lekhan ki subhkaamnayein....

Shardula said...

सुनो चाँदनी,

ये तुम्हारे लिये
कुछ हैं घुँघरू रखे
बाग शेफाली के
चाँद की फाँके !

तारों की बूँदियाँ
लड्डू इक तश्तरी
सब सजा कर रखा
तुम आओ तो सखि !

Happy birthday to you, my gorgeous bhabhi :)

15 Feb 09

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ahut sunder likha hai ..aaj hee dekha !! Aur likhiyena...