मैं एक लघु शवेत बर्फ़ का कण हूँ,
सूरज से लेता हूँ अपना अस्तित्व,
थोड़ी देर जीता हूँ,
उसी में समा जाता हूँ.
मेरा जीवन,
विभाजित, उद्वेलित और सीमित है,
अथाह से अनन्त तक.
मैं जीवित हूँ,
स्रिष्टी से संचार तक,
बर्फ़ के कण से
पिघलती हुई बूँद तक.
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Friday, March 30, 2007
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3 comments:
बहुत सुंदर और गहरे भाव हैं..बधाई.
बहुत अच्छे।
घुघूती बासूती
समीर जी और घुघूति जी बहुत-बहुत धनयवाद.
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