Sunday, June 25, 2006

कुछ नहीं चाहा है तुमसे

कुछ नहीं चाहा है तुमसे
पर तुम एक खूबसूरत मोड़ हो
जहाँ ठहरने को मन करता है
कुछ पल चुनने का मन करता है
तुम्हे पकड़ पास बिठाने को मन करता है
कुछ नहीं चाहा है तुमसे
तुम एक लगाव हो
जिसे कुछ सुनाने को मन करता है
कुछ भी कहने को मन करता है
तुम्हे पुकार बस हाँ या ना कहने को मन करता है
कुछ नहीं चाहा है तुमसे
तुम एक पर खूबसूरत मोड़ हो
जहाँ ठहरने को मन करता है।

5 comments:

अनूप भार्गव said...

किसी और की कविता 'टाइप' करनें का एक फ़ायदा यह होता है कि सब से पहली 'टिप्पणी' करनें का अवसर भी आप को ही मिलता है ।
तो 'रजनी भार्गव' स्वागत है 'हिन्दी ब्लौग जगत' में एक खूबसूरत कविता के साथ ।
अब यह संयोग ही हुआ कि पहली कविता ही मेरी सब से प्रिय कविता रही है ।
शुभ कामनाओं के साथ ..

'एक खूबसूरत मोड़'

उन्मुक्त said...

लगता है कि रजनीगन्धा भी,
होगा एक खूबसूरत मोड़|
करेगा मन जहां,
हमेशा ठहरने को |

अनूप शुक्ल said...

स्वागत है हिंदी ब्लाग जगत में इस बहुप्रतीक्षित शुरुआत पर।अनूप भाई अगर इसे अभी तक सामने न लाने के दोषी थे तो अब सारे अपराध बराबर हो गये। कोई दे या न दे लेकिन इसे शुरुआत करने में हमारा योगदान भी कम नहीं है सो हम भी बधाई के हकदार हैं।
कविता बहुत बढ़िया है। आशा है आगे भी नियमित पढ़ने को मिलती रहेंगीं।

प्रवीण परिहार said...

बहुत सुन्दर।

संजीव समीर said...

बहुत सुन्दर। बधाई और शुभ कामनाओं के साथ ..