तुम्हारी याद में एक युग समाया है,
गुज़रता है तो पुरवाई बन साँसों में समा जाता है,
हर राह सरल पगडंडी बन जाती है
जंगल की बीहड़ वीरानियाँ किनारे पर रह जाती है,
नागफ़नी पर ओस की बूँदें,
बादल बन धूप में घुल जाती हैं,
तुम्हारी आँखों की लकीरें हँसती हुई,
मेरे को तकती हैं
अनवरत कदमो से बढ़ती हुई,
मेरी हँसी को छूती हैं,
पिघलती यादें फ़िर से
एक युग में बहती हैं।
Sunday, October 14, 2007
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6 comments:
सुन्दर कोमल रचना. अच्छा लगा पढ़ना. बधाई.
दिल को छूने वाली रचना है।धन्यवाद
समीर जी और अतुल जी धन्यवाद.
युग बीते पर यादों की खुश्बू सुन्दर है मन में बाकी
और उसी से प्रतिबिम्बित होती प्रकॄति की सुन्दर झांकी
नागफ़नी,बादर,पगडंडी, जंगल, ओस हँसी पिघली सी
इतना सुन्दर शब्द चित्र है शेष रहा न कुछ भी बाकी
भावानुकूल चित्रोपम शब्दों का बड़ा ही सुंदर प्रयोग है। यह तो कहना कठिन है कि
कौन सी पंक्तियां सब से अधिक सुंदर हैं। शब्द-चयन में पर्याप्त प्रौढ़ता का परिचय
दिया है।
आप ई-कविता पर क्यों नहीं लिखती ? मेरा विनम्र अनुरोध है कि आप वहाँ भी लिखा करें।
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