Tuesday, April 13, 2010

राही

मुझको सूरज की किरण दे दो,
आकाश का नीला विस्तार दे दो,
मैं हूँ एक पाखी,
जीने के लिए ऊँची उड़ान दे दो.

मैं अपने कोमल पँखों को फ़ैलाऊँगी
बादलों के साथ बहुत दूर तक जाऊँगी
कोई साथी नहीं होगा,
इस सफ़र के अनंत बिंदु तक जाऊँगी.

पेड़ के नीचे ठंडी हवा जब बहेगी
पलकें बोझिल हो कर उनींदे सपने देखेंगी
कुछ देर सुस्ता कर,
सपनों में पथ के पाथेय को बुला लेंगी.

दूर दराज़ जब राह को तकूँगी
झूले की पींगों से और उपर उड़ूँगी
आसमान को छूती हुई
राह को दो पल में कनक सी चुग लूँगी


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