Sunday, April 19, 2009

दुआ

बचपन से दुआएँ साथ चलती हैं

आँगन को बुहारती
टीन के डिब्बे में आम की पौध सी पलती हैं

मेरे हाथ की लकीरों में
गली में स्टापू सी खेलती हैं

रात में सपनों सी
दिन में पूजा के आचमन सी मिलती हैं

बाँस के झुरमुट में
मेरे तलवे के नीचे धूप सी खिलती है

नन्हे पैरों से विचरती
आँगन में ओस की बूँदों सी झरती हैं

बट पर मन्नतों में
मेरी कलाई में मौली से बँधी मिलती है

बचपन से दुआएँ साथ चलती हैं
दीवारों पर फूल के बूटों सी मिलती हैं।


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