टूटी शाखों पर गिरती पानी की बूँदें
दालान में कपड़ों से टपकती बूँदें
दीवार से जैसे नीले झरने फूटते हैं
धूप से मेरी दोस्ती
कल ही हुई थी
जब वो खाट के नीचे दो पल को सोई थी
आज फिर कगूरों से टपकती हैं बूँदें
आंगन फिर खाली थाल सा बजता है
कोसों दूर
अम्बर फिर से टूटता है।
Monday, October 15, 2012
Tuesday, July 17, 2012
हायकु
बौना सन्नाटा
चटके इश्तहार
फ़िल्म की रील
..........
टूटे कंगूरे
बूँदों से भरा थाल
शिव मंदिर
................
रात चांदनी
पोखर तले चांद
गुनती बाट
.................
पुरानी मिल
धूप लिखती किस्से
बिखरे शीशे
.................
अधूरी बात
काला दंतमंजन
उलझी भोर
...................
चटके इश्तहार
फ़िल्म की रील
..........
टूटे कंगूरे
बूँदों से भरा थाल
शिव मंदिर
................
रात चांदनी
पोखर तले चांद
गुनती बाट
.................
पुरानी मिल
धूप लिखती किस्से
बिखरे शीशे
.................
अधूरी बात
काला दंतमंजन
उलझी भोर
...................
Friday, April 20, 2012
फ़ेनिल से भीगे वन
सागर की विस्तृत बाँहों में
सुदूर गाँव में
फ़ेनिल से भीगे वन
अक्सर चम्पई फूलों से महक उठते हैं
बंद गली में मकान की कोठरी में
लड़की चार अंगुल की आसपास की दीवारों पर
खड़िया से वन, पक्षी के चित्रों को उकेरती है
खिड़की के जालों के बीच हाथ बढ़ा कर
उस महक को पहनना चाहती है
दीवारों पर बने चित्रों के बीच सजाना चाहती है
जादुई पहनावा शायद कर दे अदृश्य उन दीवारों को
जो कमरे को नापती हैं हर दिन
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सुदूर गाँव में
फ़ेनिल से भीगे वन
अक्सर चम्पई फूलों से महक उठते हैं
बंद गली में मकान की कोठरी में
लड़की चार अंगुल की आसपास की दीवारों पर
खड़िया से वन, पक्षी के चित्रों को उकेरती है
खिड़की के जालों के बीच हाथ बढ़ा कर
उस महक को पहनना चाहती है
दीवारों पर बने चित्रों के बीच सजाना चाहती है
जादुई पहनावा शायद कर दे अदृश्य उन दीवारों को
जो कमरे को नापती हैं हर दिन
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Thursday, April 12, 2012
ताना बाना
तानों बानों का ये जोड़
यूँ ही उलझता जाता हैं
एक सुलझाओ तो दूसरा पैबंद नज़र आता है
तुम बुलाओ तो आसमान साफ़ नज़र आता है
चहचहाती चिड़िया और आंगन की बयार में
मीठे नीम की सांसें तुम्हारी आहटों को टोहती हैं
नरम मिट्टी से जो अंकुर फूटता है
वह सदियों को गिरह में लिये
पगडंडी पर राजा के किले के आगे
द्वारपाल सा रहता है
तुम आओ तो बंद किवाड़ खुल जाते हैं
हवाओं में मीठे नीम की सांसों के
अनुबंध खुल जाते हैं
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यूँ ही उलझता जाता हैं
एक सुलझाओ तो दूसरा पैबंद नज़र आता है
तुम बुलाओ तो आसमान साफ़ नज़र आता है
चहचहाती चिड़िया और आंगन की बयार में
मीठे नीम की सांसें तुम्हारी आहटों को टोहती हैं
नरम मिट्टी से जो अंकुर फूटता है
वह सदियों को गिरह में लिये
पगडंडी पर राजा के किले के आगे
द्वारपाल सा रहता है
तुम आओ तो बंद किवाड़ खुल जाते हैं
हवाओं में मीठे नीम की सांसों के
अनुबंध खुल जाते हैं
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Monday, April 09, 2012
सिरों के धागे
यादों के कोई सिरे नहीं होते
अंत नहीं होता, शुरुआत नहीं होती
बारिश होती है
अमलतास से टपकती बूँदे होती है
दालान में सूखती जवें होती है
अलगनी पर कपड़े, धूप और होली के रंग
और फिर तुम्हारी बातें
गौरया की चोंच में पकड़ी सुबह हो जैसे
रेशमी, सुनहरी गलियों का ताना बाना हो
बातें नहीं हों तो
शाम में घुलती रात जैसे पहने हो
जामुन का फ़लसई जामा
बचपन के कैन्वस पर क्रैयोन से
जितने भी चित्र उकेरे थे
भित्ती से उभर आए हैं
मेरे मन के उस कोने में जहाँ
गहरा नीला आसमान है,
गहरा नीला आसमान होता है
जामुन का फ़लसई जामा होता है
तुम्हारी बातें रेशम सी होती हैं
और
यादें भी होती हैं नरम बिछौने के नीचे
दबी हुई धूप हो जैसे।
अंत नहीं होता, शुरुआत नहीं होती
बारिश होती है
अमलतास से टपकती बूँदे होती है
दालान में सूखती जवें होती है
अलगनी पर कपड़े, धूप और होली के रंग
और फिर तुम्हारी बातें
गौरया की चोंच में पकड़ी सुबह हो जैसे
रेशमी, सुनहरी गलियों का ताना बाना हो
बातें नहीं हों तो
शाम में घुलती रात जैसे पहने हो
जामुन का फ़लसई जामा
बचपन के कैन्वस पर क्रैयोन से
जितने भी चित्र उकेरे थे
भित्ती से उभर आए हैं
मेरे मन के उस कोने में जहाँ
गहरा नीला आसमान है,
गहरा नीला आसमान होता है
जामुन का फ़लसई जामा होता है
तुम्हारी बातें रेशम सी होती हैं
और
यादें भी होती हैं नरम बिछौने के नीचे
दबी हुई धूप हो जैसे।
Saturday, February 25, 2012
मंगल कामनाएँ
यूँ ही कुछ पल गुज़र जाएँगे
यह साल भी जाता जाएगा
सदियाँ भी मेरी उँगली में लिपटी
भँवर सी घूमती जाएँगी
और फिर वही सुबह होगी
जब बस स्टॉप पर
धूप के टेढ़े तिरछे साए
कोहरे से निकल कर
मेरे पाँव के तलवे गुदगुदाएँगे
भारी बस्ते के बोझ से दबे कांधे
और थोड़े झुक जाएँगे
मैं उल्लसित सी
स्कूल जाने के लिये
कोहरे में लिपटे रा्ग गुनगुनाऊँगी
बाज़ार में खुलती दुकानें, धुली पटरी,
चाय की दुकान में
ठिठुरते इतिहास की तारीखों के जब पन्ने पलटूँगी
तो कहीं और
इस दिन को एक लघु कथा सा पाऊँगी
या
धूप से लिपटे अहसास को पाऊँगी
नहीं तो पाउँगी बच्चियों के बारे में एक लेख
जो स्कूल जाती थीं और कुछ बनना चाहती थीं।
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यह साल भी जाता जाएगा
सदियाँ भी मेरी उँगली में लिपटी
भँवर सी घूमती जाएँगी
और फिर वही सुबह होगी
जब बस स्टॉप पर
धूप के टेढ़े तिरछे साए
कोहरे से निकल कर
मेरे पाँव के तलवे गुदगुदाएँगे
भारी बस्ते के बोझ से दबे कांधे
और थोड़े झुक जाएँगे
मैं उल्लसित सी
स्कूल जाने के लिये
कोहरे में लिपटे रा्ग गुनगुनाऊँगी
बाज़ार में खुलती दुकानें, धुली पटरी,
चाय की दुकान में
ठिठुरते इतिहास की तारीखों के जब पन्ने पलटूँगी
तो कहीं और
इस दिन को एक लघु कथा सा पाऊँगी
या
धूप से लिपटे अहसास को पाऊँगी
नहीं तो पाउँगी बच्चियों के बारे में एक लेख
जो स्कूल जाती थीं और कुछ बनना चाहती थीं।
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Friday, February 24, 2012
कंपकपाते उजाले
न्यू यॉर्क की बारिश में
बिजली के तारों पर बारिश की बूँदें
कतार में खड़ी
बंद शीशी में तिलिस्मी जादू सी गिरती हैं
शो विनडो में आधा फटा इश्तिहार
आधी नदी और चील के पंख
उड़ती नदी जिसमें असंख्य चाहतें
असंख्य न गुज़रे हुए पल
सूरज को ढाँप लेती है
दिन के कपकपाते उजाले में
चैरी के पेड़ से बँधी साईकिल
जीने पर खाली सोडा के कैन खनखनाते हैं
कोने में अलाव पर हाथ तापते हुए
हँसी के मखमली पल
दरवाज़े के कोने में पड़े
बेघर को कम्बल ओढ़ा आते हैं
आज की तारीख पर ये जरदोरी का काम
समय पर खूब फ़बता है
रात की तंह में
गलियों के जंगल में
कोहरा घुप्प सा ज़मीन के नीचे धंसा
आँखों के जंगल में
सपने बीन रहा है
नया साल फिर एक बिलबोर्ड के साइन से शुरू होता है
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बिजली के तारों पर बारिश की बूँदें
कतार में खड़ी
बंद शीशी में तिलिस्मी जादू सी गिरती हैं
शो विनडो में आधा फटा इश्तिहार
आधी नदी और चील के पंख
उड़ती नदी जिसमें असंख्य चाहतें
असंख्य न गुज़रे हुए पल
सूरज को ढाँप लेती है
दिन के कपकपाते उजाले में
चैरी के पेड़ से बँधी साईकिल
जीने पर खाली सोडा के कैन खनखनाते हैं
कोने में अलाव पर हाथ तापते हुए
हँसी के मखमली पल
दरवाज़े के कोने में पड़े
बेघर को कम्बल ओढ़ा आते हैं
आज की तारीख पर ये जरदोरी का काम
समय पर खूब फ़बता है
रात की तंह में
गलियों के जंगल में
कोहरा घुप्प सा ज़मीन के नीचे धंसा
आँखों के जंगल में
सपने बीन रहा है
नया साल फिर एक बिलबोर्ड के साइन से शुरू होता है
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