Wednesday, August 02, 2006

मेरी कहानी

तुम नहीं आओगे,
तुम नहीं सुनोगे,
ये कहानी जो मैंने लिखी है
पानी की सतह पर,
लहरों की चपलता पर,
ढलते सूरज की सुनहरी धूप पर,
भुल से कभी जो किनारे पर आओ
और मेरी आँखों का समुँदर देखो,
और उसमें दूर तक क्षितिज को ढूँढो
तो रेत में दबे शँख को निकाल लेना
उसमें जब लहरों का शोर सुनोगे
तो मेरी कहानी तुम तक
अथाह अनन्त से बहती हुई
स्रिष्टी के हर कण में मिल जाएगी.

1 comment:

अनूप शुक्ल said...

बढ़िया!