देखो सखी सूरज ने आज मुझे जगाया
ओस की बूँदों ने पैरों को गुदगुदाया
गैंदे और गुलाब ने मखमली धूप को सजाया
मेरे हाथों की तपिश को गुलाल बना
अपनें मुख पर लगाया
सुबह की इस आब को,
स्थिर क्षण की इस आस को,
जीवन भर के इस प्रयास को,
नक्षत्र बना आकाश में टांक दिया है
जब टूटेगा, तो अनकही इच्छा बना
फ़िर इस सुबह को बुला लूँगी
एक और क्षणिक भ्रम बना
सूरज को फ़िर बुला लूँगी ।
____________________________________
Wednesday, August 09, 2006
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
वाह ! सुंदर
बहुत सुंदर, बधाई.
समीर लाल
Post a Comment