Friday, February 24, 2012

कंपकपाते उजाले

न्यू यॉर्क की बारिश में
बिजली के तारों पर बारिश की बूँदें
कतार में खड़ी
बंद शीशी में तिलिस्मी जादू सी गिरती हैं
शो विनडो में आधा फटा इश्तिहार
आधी नदी और चील के पंख
उड़ती नदी जिसमें असंख्य चाहतें
असंख्य न गुज़रे हुए पल
सूरज को ढाँप लेती है
दिन के कपकपाते उजाले में
चैरी के पेड़ से बँधी साईकिल
जीने पर खाली सोडा के कैन खनखनाते हैं
कोने में अलाव पर हाथ तापते हुए
हँसी के मखमली पल
दरवाज़े के कोने में पड़े
बेघर को कम्बल ओढ़ा आते हैं
आज की तारीख पर ये जरदोरी का काम
समय पर खूब फ़बता है

रात की तंह में
गलियों के जंगल में
कोहरा घुप्प सा ज़मीन के नीचे धंसा
आँखों के जंगल में
सपने बीन रहा है
नया साल फिर एक बिलबोर्ड के साइन से शुरू होता है

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