Thursday, September 18, 2008

आरिगामी

धूप और पत्तों की आरिगामी
मेरी खिड़की पर बन रही थी,
सुबह के बदलते पहर
मुड़ते, खुलते
खिड़की के एक कोने पर
सीमित रह गए थे।
उस आरिगामी में रह गई थी अब,
एक मैना,
एक पत्ती,
एक टुकड़ा धूप।

धूप सरकी,
पत्ती टूटी,
मैना उड़ गई,
और,
अब रह गया है
सिर्फ़ कोरा कागज़
दूसरे पहर के रंग में ढलने के लिये
नई आरिगामी बनने के लिये।

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24 comments:

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

बहुत ही सुंदर...

अमिताभ मीत said...

दूसरे पहर के रंग में ढलने के लिये
नई आरिगामी बनने के लिये।

बहुत ख़ूब.

Anonymous said...

सुन्दर!

manvinder bhimber said...

धूप और पत्तों की आरिगामी
मेरी खिड़की पर बन रही थी,
सुबह के बदलते पहर
मुड़ते, खुलते
खिड़की के एक कोने पर
सीमित रह गए थे।
उस आरिगामी में रह गई थी अब,
एक मैना,
एक पत्ती,
एक टुकड़ा धूप।
waah ....bahut sunder

Pratyaksha said...

उड़ी हुई मैना फिर आयेगी
धूप में..
बहुत सुंदर !

पारुल "पुखराज" said...

bahut- bahut acchey

श्रीकांत पाराशर said...

Bahut badhia rachna.

Advocate Rashmi saurana said...

धूप सरकी,
पत्ती टूटी,
मैना उड़ गई,
और,
अब रह गया है
सिर्फ़ कोरा कागज़
bhut sundar. ati uttam jari rhe.

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

rajniji,
prakiti key dradshya ka bhut sundar chitran kiya hai aapney. aapki abhivyakti badi prakhar hai.kabhi fursat ho to mere blog per bhi aayein.

फ़िरदौस ख़ान said...

धूप और पत्तों की आरिगामी
मेरी खिड़की पर बन रही थी,
सुबह के बदलते पहर
मुड़ते, खुलते
खिड़की के एक कोने पर
सीमित रह गए थे।
उस आरिगामी में रह गई थी अब,
एक मैना,
एक पत्ती,
एक टुकड़ा धूप।

बहुत ही उम्दा...

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!! वाह!

कुश said...

एक मैना,
एक पत्ती,
एक टुकड़ा धूप।

kya baat hai.. bahut hi sundar..

कुश said...

arey waah lagta hai main aapka blog padh raha tha aur aap mera blog padh rahi thi.. aap comment bhi abhi mila mujhe.. :)

डॉ .अनुराग said...

(३)रजनी जी
धूप सरकी,
पत्ती टूटी,
मैना उड़ गई,
और,
अब रह गया है
सिर्फ़ कोरा कागज़
दूसरे पहर के रंग में ढलने के लिये
नई आरिगामी बनने के लिये।......बहुत सुंदर......

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बहुत सुँदर !
बडे दिनोँ बाद
आना हुआ
पर इस के साथ :)
स्नेह,

- लावण्या

pallavi trivedi said...

bahut sundar....

योगेन्द्र मौदगिल said...

अद्भुत भावबोध...
आपको बधाई..

Dr. Nazar Mahmood said...

its really wseet
wow

vijaymaudgill said...

धूप सरकी,
पत्ती टूटी,
मैना उड़ गई,
और,
अब रह गया है
सिर्फ़ कोरा कागज़
वाह क्या बात है।
रजनी जी आपकी पोस्ट बहुत ही लाजवाब है। और उससे भी लाजवाब है आपकी मुस्कान। भगवान करे आपकी ये मुस्कान सदा बरकरार रहे। सिर्फ़ चेहरे से ही नहीं बल्कि अंतरआत्मा से भी।
शुभकामनाएं

Puja Upadhyay said...

bahut khoobsoorat, bahut pyaari.

BrijmohanShrivastava said...

आरिगामी का अर्थ में समझ नहीं पाया मुआफी चाहता हूँ

श्यामल सुमन said...

अब रह गया है
सिर्फ़ कोरा कागज़
दूसरे पहर के रंग में ढलने के लिये
नई आरिगामी बनने के लिये।

बहुत अच्छी पंक्तियाँ। मन को छू लेनेवाली।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.

Anonymous said...

एक मैना,
एक पत्ती,
एक टुकड़ा धूप।

धूप सरकी,
पत्ती टूटी,
मैना उड़ गई,
और,
अब रह गया है
सिर्फ़ कोरा कागज़
दूसरे पहर के रंग में ढलने के लिये
नई आरिगामी बनने के लिये।


bahut hi sundar

Reetesh Gupta said...

बहुत दिनो बाद आपके ब्लाग पर आया हूँ ..और यह सुंदर कविता पढ़ने को मिली...बधाई