धूप और पत्तों की आरिगामी
मेरी खिड़की पर बन रही थी,
सुबह के बदलते पहर
मुड़ते, खुलते
खिड़की के एक कोने पर
सीमित रह गए थे।
उस आरिगामी में रह गई थी अब,
एक मैना,
एक पत्ती,
एक टुकड़ा धूप।
धूप सरकी,
पत्ती टूटी,
मैना उड़ गई,
और,
अब रह गया है
सिर्फ़ कोरा कागज़
दूसरे पहर के रंग में ढलने के लिये
नई आरिगामी बनने के लिये।
_________________
Thursday, September 18, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
24 comments:
बहुत ही सुंदर...
दूसरे पहर के रंग में ढलने के लिये
नई आरिगामी बनने के लिये।
बहुत ख़ूब.
सुन्दर!
धूप और पत्तों की आरिगामी
मेरी खिड़की पर बन रही थी,
सुबह के बदलते पहर
मुड़ते, खुलते
खिड़की के एक कोने पर
सीमित रह गए थे।
उस आरिगामी में रह गई थी अब,
एक मैना,
एक पत्ती,
एक टुकड़ा धूप।
waah ....bahut sunder
उड़ी हुई मैना फिर आयेगी
धूप में..
बहुत सुंदर !
bahut- bahut acchey
Bahut badhia rachna.
धूप सरकी,
पत्ती टूटी,
मैना उड़ गई,
और,
अब रह गया है
सिर्फ़ कोरा कागज़
bhut sundar. ati uttam jari rhe.
rajniji,
prakiti key dradshya ka bhut sundar chitran kiya hai aapney. aapki abhivyakti badi prakhar hai.kabhi fursat ho to mere blog per bhi aayein.
धूप और पत्तों की आरिगामी
मेरी खिड़की पर बन रही थी,
सुबह के बदलते पहर
मुड़ते, खुलते
खिड़की के एक कोने पर
सीमित रह गए थे।
उस आरिगामी में रह गई थी अब,
एक मैना,
एक पत्ती,
एक टुकड़ा धूप।
बहुत ही उम्दा...
बेहतरीन!! वाह!
एक मैना,
एक पत्ती,
एक टुकड़ा धूप।
kya baat hai.. bahut hi sundar..
arey waah lagta hai main aapka blog padh raha tha aur aap mera blog padh rahi thi.. aap comment bhi abhi mila mujhe.. :)
(३)रजनी जी
धूप सरकी,
पत्ती टूटी,
मैना उड़ गई,
और,
अब रह गया है
सिर्फ़ कोरा कागज़
दूसरे पहर के रंग में ढलने के लिये
नई आरिगामी बनने के लिये।......बहुत सुंदर......
बहुत सुँदर !
बडे दिनोँ बाद
आना हुआ
पर इस के साथ :)
स्नेह,
- लावण्या
bahut sundar....
अद्भुत भावबोध...
आपको बधाई..
its really wseet
wow
धूप सरकी,
पत्ती टूटी,
मैना उड़ गई,
और,
अब रह गया है
सिर्फ़ कोरा कागज़
वाह क्या बात है।
रजनी जी आपकी पोस्ट बहुत ही लाजवाब है। और उससे भी लाजवाब है आपकी मुस्कान। भगवान करे आपकी ये मुस्कान सदा बरकरार रहे। सिर्फ़ चेहरे से ही नहीं बल्कि अंतरआत्मा से भी।
शुभकामनाएं
bahut khoobsoorat, bahut pyaari.
आरिगामी का अर्थ में समझ नहीं पाया मुआफी चाहता हूँ
अब रह गया है
सिर्फ़ कोरा कागज़
दूसरे पहर के रंग में ढलने के लिये
नई आरिगामी बनने के लिये।
बहुत अच्छी पंक्तियाँ। मन को छू लेनेवाली।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.
एक मैना,
एक पत्ती,
एक टुकड़ा धूप।
धूप सरकी,
पत्ती टूटी,
मैना उड़ गई,
और,
अब रह गया है
सिर्फ़ कोरा कागज़
दूसरे पहर के रंग में ढलने के लिये
नई आरिगामी बनने के लिये।
bahut hi sundar
बहुत दिनो बाद आपके ब्लाग पर आया हूँ ..और यह सुंदर कविता पढ़ने को मिली...बधाई
Post a Comment