कुछ खत पहुँचे, कुछ पहुँचे ही नहीं,
कुछ उत्तरी दिशा में देवदारों पर अटक गए,
कुछ दक्षिण दिशा में संदल बन में भटक गए.
दरवाज़े की ओट में किसी की नज़र में रह गए,
किसी राह में साँझ के साथ डूबते चले गए,
तुम्हारे साथ चलते हुए कुछ लिखे गए
पर टूटे माणिक से हर जगह बिखर गए,
आरज़ू बीनते हुए मन के हर पृष्ठ पर लिखे
पर कुछ मन की बारिश में भीगते हुए यूँ ही धुल गए,
कुछ खत पहुँचे, कुछ पहुँचे ही नहीं।
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Monday, December 10, 2007
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13 comments:
बिखरे ख़त किंतु सुदर विचार.
अच्छी कविता.
बहुत सुंदर शब्दों का चयन और अद्भुत भाव. वाह वाह.
मेरी एक ग़ज़ल का शेर है:
आंसुओं से न भीगे कहीं
ख़त हैं कागज़ के गल जायेंगे.
नीरज
बहुत बढ़िया अच्छी कविता
चलिए खत से हमारा भौगोलिक ज्ञान अवश्य बढ़ा…
लेकिन आपने भाव भी उसी तरह व्यापक हैं…
अच्छा लगा…।
जो खत पहुंचे नहीं लगा वे बिना पते के सभी हुए गुम
क्योंकि विदित ये मुझे निरन्तर लिखा उन्हें करते मुझको तुम
उनमें से कुछ उड़े हवा के झोंको साथ चले
वे मुझको मिल गये, मगर पतझड़ के नाम मिले
एक निहायत खूबसूरत रचना के लिये धन्यवाद स्वीकारें
बहुत बढिया जी...
ई-मेल के युग में खत की बात जैसे अनयास ही मंद-मंद खुश्बू का झोंका....
सुन्दर कविता...बधाई स्वीकार करें
बहुत अच्छा लिखा है. बधाई.
बहुत सुन्दर!
घुघूती बासूती
बाल किशन जी,महेन्द्र जी,दिव्याभ जी,धन्यवाद मेरी कविता सराहने का। राकेश जी आपकी टिप्पणी मेरी कविता से भी सुंदर है,धन्यवाद। रवि जी, मीत जी और घुघूति जी,धन्यवाद, आपको कविता अच्छी लगी, बहुत अच्छा लगा। नीरज जी बहुत खूबसूरत शेर है,धन्यवाद।
कुछ उत्तरी दिशा में देवदारों पर अटक गए,
कुछ दक्षिण दिशा में संदल बन में भटक गए.
do panktiyaan sab kah gayin...
रजनी जी
आप मेरे ब्लॉग पर आयीं, ग़ज़ल पढी और पसंद की उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया. इसी तरह हिम्मत बढाती रहें.
नीरज
तुम्हारे साथ चलते हुए कुछ लिखे गए
पर टूटे माणिक से हर जगह बिखर गए,
बहुत सुंदर!
सभी बड़े नामो के ब्लॉग पर आपके कमेंट्स पढता हूँ.. भई हमारा न तो कोई बड़ा नाम है न कोई पहचान फ़िर भी ब्लॉग का दुनिया में एक छोटा सा अपना भी घोसला बना लिया है ..एक सवाल जेहन में कई बार उठता है की क्या नाम/पहचान/ और सब कुछ एक खास वर्ग के लिए है
और आपके कमेंट्स भी....
कुछ लिखा है कुछ लिखना है बाकि....
आपका स्नेह चाहूँगा...
अपना पता है-
www.shesh-fir.blogspot.com
डॉ. अजीत
शेष फ़िर.......
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