मेरे सपने मेरे अपने हैं,
कोई भी इस हाशिए पर लिखे
ये फ़िर भी मेरे अपने हैं.
मौजों पर सवार ये तख्ती,
बहुत थपेड़े सहती है.
क्षितिज तक पहुँचने की चाह में
खुद ही मीलों तक बहती है.
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Friday, May 16, 2008
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7 comments:
बेशक, ये सपने आप ही के ही हैं। बहुत उम्दा लिखा है...वाह..वाह !!
सादगी से भरपूर बेहद बेहतरीन रचना है..
***राजीव रंजन प्रसाद
www.rajeevnhpc.blogspot.com
बहुत गजब!! क्या बात है! उम्दा!!!
अच्छी रचना का प्रस्तुत किया है, बधाई
मौजों पर सवार ये तख्ती,
बहुत थपेड़े सहती है.
बहुत सुंदर .....मैंने जो आपका adrees अपने ब्लॉग पर डाला है लगता है ग़लत है....नई पोस्ट नही दिखा रहा है ...ओर मुझे लगा आप लिख नही रही है ....इन दिनों..
उम्मीदोँ की कश्ती,
यूँ ही,
सपनो के पाल से फैली,
हवाओँ के दम पे,
बढती रहे,
रजनी भाभी जी :)
- लावण्या
सुंदर !
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