मुझसे मेरा परिचय करा दो
पेड़ की छाल से मेरा आवरण हटा दो
एक नवअंकुरित पौध
मिट्टी को खगाल
अभी-अभी फूटी है,
लचीली, कच्ची टहनी
नभ को छूने उठी है,
प्रभात की वेला में
गरमाहट उसको मिली है,
अमराई में चमकती हुई
मकड़ी के जालों सी खिली है
इससे पहले की वो बड़ी हो
परत दर परत गठे,
उस नवअंकुरित अहसास को
हवा में उड़ा दो,
मेरे पोर-पोर में बसा दो,
उनसे उपजित क्षणों को
कोई सुरभित संज्ञा दे दो,
मुझसे मेरा परिचय करा दो ।
Sunday, April 22, 2007
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3 comments:
बहुत सुंदर रचना.बधाई.
सुंदर प्रवाह लिये ....बढ़िया कविता...बधाई
Bahut sundar likha aapne,
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