Friday, April 20, 2012

फ़ेनिल से भीगे वन

सागर की विस्तृत बाँहों में
सुदूर गाँव में
फ़ेनिल से भीगे वन
अक्सर चम्पई फूलों से महक उठते हैं
बंद गली में मकान की कोठरी में
लड़की चार अंगुल की आसपास की दीवारों पर
खड़िया से वन, पक्षी के चित्रों को उकेरती है
खिड़की के जालों के बीच हाथ बढ़ा कर
उस महक को पहनना चाहती है
दीवारों पर बने चित्रों के बीच सजाना चाहती है
जादुई पहनावा शायद कर दे अदृश्य उन दीवारों को
जो कमरे को नापती हैं हर दिन

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Thursday, April 12, 2012

ताना बाना

तानों बानों का ये जोड़
यूँ ही उलझता जाता हैं
एक सुलझाओ तो दूसरा पैबंद नज़र आता है
तुम बुलाओ तो आसमान साफ़ नज़र आता है
चहचहाती चिड़िया और आंगन की बयार में
मीठे नीम की सांसें तुम्हारी आहटों को टोहती हैं
नरम मिट्टी से जो अंकुर फूटता है
वह सदियों को गिरह में लिये
पगडंडी पर राजा के किले के आगे
द्वारपाल सा रहता है
तुम आओ तो बंद किवाड़ खुल जाते हैं
हवाओं में मीठे नीम की सांसों के
अनुबंध खुल जाते हैं

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Monday, April 09, 2012

सिरों के धागे

यादों के कोई सिरे नहीं होते
अंत नहीं होता, शुरुआत नहीं होती
बारिश होती है
अमलतास से टपकती बूँदे होती है
दालान में सूखती जवें होती है
अलगनी पर कपड़े, धूप और होली के रंग
और फिर तुम्हारी बातें
गौरया की चोंच में पकड़ी सुबह हो जैसे
रेशमी, सुनहरी गलियों का ताना बाना हो
बातें नहीं हों तो
शाम में घुलती रात जैसे पहने हो
जामुन का फ़लसई जामा
बचपन के कैन्वस पर क्रैयोन से
जितने भी चित्र उकेरे थे
भित्ती से उभर आए हैं
मेरे मन के उस कोने में जहाँ
गहरा नीला आसमान है,

गहरा नीला आसमान होता है
जामुन का फ़लसई जामा होता है
तुम्हारी बातें रेशम सी होती हैं
और
यादें भी होती हैं नरम बिछौने के नीचे
दबी हुई धूप हो जैसे।