अस्तित्व मेरा कुछ तुझ से घुला मिला है
यहीं कहीं तुझ में रचा बसा है
आकाश की असीमता में
दूर क्षितिज में उगता ध्रुव तारा सा लगता है,
सूरज की तपती धूप में
झुलसने के बाद
बारिश से भीगी सड़कों की हुमस में
बादलों सा उड़ता है
अपने में ही बांधू तो
बहुत संकुचित हो जाता है
तुझ से मिल कर जब
विस्तार पाता है तो
मेरा हर एक अणु
सृष्टी की कृति बन जाता है।
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Saturday, July 10, 2010
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