Wednesday, September 30, 2009

क्वार गीत

रास्ते में जब रुकी तो
दीवारों के कान उग आए थे
पत्तों की सरसराह्ट थी
आँगन में बुदबुदाहट थी
और
दीवारों की आँखों में रंग भर गए थे
कपाट पर कूची से बूटे खिले थे
सफ़ेद पुती दीवार पर जलाशय बने थे
बाहर
अहाते में तिमिर का कोलाहल बोल रहा था
झींगुर की आवाज़े थीं
चन्द्रकिरण की आने की आह्टें थी

रास्ते में जब रुकी तो
मेरे अंदर डूब गई थी सब आवाज़ें
उग आया था एक दरख्त जहाँ
बसती है लाल गौरैया
गाती है वो क्वार गीत जो
पतझड़ में भी बसंत का आभास दिला जाता है।

Thursday, September 17, 2009

आसमानी फूल

सेतू के किनारे खिले थे
कुछ आसमानी फूल,
पानी में बिम्बित था
सुनहरी आकाश अपार,

मैंने आकाश की असीमता
उठा के दी थी तुम्हे,
तुम्हारी असीमता में मुझे मिले
कुछ फूल उपहार में,
आँगन में मेघदूत मिले
काले और बौराए से,
और
संदेसों की झारी में
गुलाब की कुछ पाँखुरी पड़ी

काली स्याह रात में
जब असीमता ढली,
चाँदनी दबे पाँव
ले आई थी कहानी तारों की
और एक उल्का खिली थी
मेरे सिरहाने ले के
कुछ आसमानी फूल