उड़ती फ़ूस
कटी-कटी धूप
गुड़-गुड़ करती
बाबा के हुक्के की मूँज
जेठ दुपहरी
छाँव तले गिलहरी
किट-किट करती
अम्मा की सुपारी दिन सून
लम्बे दिन
लम्बी तारीखें
औंधे मुँह ऊँघती
जीजी की किताबें, परचून
गुम हवा
झुलसी धरा
मेढ़ पर सोचती
उसकी आँखें लगी, सब सून
_____________
Friday, July 03, 2009
Subscribe to:
Posts (Atom)