Friday, July 03, 2009

जेठ बुलाए

उड़ती फ़ूस
कटी-कटी धूप
गुड़-गुड़ करती
बाबा के हुक्के की मूँज

जेठ दुपहरी
छाँव तले गिलहरी
किट-किट करती
अम्मा की सुपारी दिन सून

लम्बे दिन
लम्बी तारीखें
औंधे मुँह ऊँघती
जीजी की किताबें, परचून

गुम हवा
झुलसी धरा
मेढ़ पर सोचती
उसकी आँखें लगी, सब सून
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