टूटते तारे
लान में लेटे हुए
अगस्त माह
गाँव में चाँद
बावड़ी में भीगा है
अमा आ गई
धुला सूरज
जंगले आती धूप
चाय की चुस्की
गरजे मेघ
कानाफ़ूसी करते
ऊँचे शीशम
नन्ही मछली
पोखर है हाथ में
जमी है काई
मेपल पत्ती
डायरी के पन्ने
झड़ रहे हैं
__________
Wednesday, October 01, 2008
Subscribe to:
Posts (Atom)