Wednesday, October 01, 2008

कुछ हायकु

टूटते तारे
लान में लेटे हुए
अगस्त माह

गाँव में चाँद
बावड़ी में भीगा है
अमा आ गई

धुला सूरज
जंगले आती धूप
चाय की चुस्की

गरजे मेघ
कानाफ़ूसी करते
ऊँचे शीशम

नन्ही मछली
पोखर है हाथ में
जमी है काई

मेपल पत्ती
डायरी के पन्ने
झड़ रहे हैं

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