आकाश को कितनी ही बार
अपने हाथों में ले कर
दूधिया बादल से नहाई हूँ मैं,
आकांक्षाओं को कई बार
अपनी आँखों में संजो कर
रंग भरी पिचकारी सी छूटी हूँ मैं,
और फिर,
गुलमोहर की तरह गर्व से
तुम पर बिखर गई हूँ मैं,
क्षितिज का प्रथम पहरेदार
आकाश में वो जो ध्रुव तारा है,
उसे तुम्हे सौंप कर
रात में चाँदनी बन कर छिटक गई हूँ मैं
तुम जानो या न जानो
अहसासों के इस गुलदान में
बादलों से नहाई हूँ,
रंगों से भीगी हूँ,
चाँदनी सी छिटकी हूँ,
और इन्ही खूबसूरत अहसासों से,
संदली हवा की तरह
महक गई हूँ मैं।
Monday, June 02, 2008
Subscribe to:
Posts (Atom)