Friday, January 18, 2008

प्रार्थना

धूप में लिपटी एक प्रार्थना,
कुछ चुप, कुछ कहती हुई,
दूब के साथ उग रही थी।
मेरी कोट की जेब में
भूली हुई मेवा की तरह
अंगुलियों में कुलमुला रही थी।

मुट्ठी में भर कर,
मन में कुछ बुदबुदा कर,
फूँक मारी थी।

तुम्हारी आँखों के अथाह सागर में
गुम हुई खामोशी बता रही है,
शायद वो दुआ तुम तक पहुँची है।

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Monday, January 14, 2008

चेतना के फूल

कमरे में थी एक मेज़,
दो कुर्सियाँ,
सीलिंग से लटके लैम्प की
रोशनी गोल सीमित दायरे में.

उससे परे थे कुछ साए,
खिड़की में रखे गमले के,
कांउटर पर कप और प्लेट के,
खूँटी पर टँगे कपड़ों के.

समय के सन्नाटे में,
झाँक रहा था सूरज का एक टुकड़ा,
आधा मेज़ पर और आधा फ़र्श पर लेटा हुआ,
धीरे-धीरे फ़र्श पर उतरते हुए
रह गई थी अब एक लकीर
जो घुल-मिल गई थी मेरी हाथ की लकीरों से,
चेतना के फूल खिल गए थे इस जज़ीरे पर।
समय के गठबँधन खुल गए थे किनारे पर।
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Wednesday, January 09, 2008

नया साल

आया नया साल
ढलते दिन के साथ,
साँसे बह चली,
लिये नूतन दिवस के पराग।

आया नया साल
बदलती तिथि के साथ,
अहसासों की गिलौरी में
बस गई है मीठी आस

आया नया साल
पुराने दिनों के साथ
आस्था की मौली बाँधी,
नए सूर्योदय के साथ।

आया नया साल
गुज़रते सपनों के साथ,
खुरदरे समय पर लिखी
तराशी हुई कहानियाँ आज।

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